The Journey of Million Emotions: लव्जों के रास्ते..........दिल तक

Sunday, August 19, 2012

लव्जों के रास्ते..........दिल तक

             हर रोज़  यह  घड़ी  कई बार  ऊँचे-नीचे ,चलते-रुकते ,अपने निश्चित सुर-ताल से मेरी नींद की कड़ी  को खोलने का प्रयास  करती है ताकि मेरी आँखें उससे आज़ाद  होकर सूरज की किरणों का उस रोज़ अपने घर में स्वागत कर सकें ।पर मैं  हर रोज़  कई बार उसको छटकती  हूँ ,पटकती हूँ ,धुतकारती  हूँ और नींद में  अपनी नींद को पुचकारती   हूँ और फिर से उसी  के गले लग जाती हूँ; मेरी लाचार और बेबस घड़ी के कई प्रयासों को निष्फल  कर जाती हूँ।बार- बार यह सब देख नींद का भी धैर्य का सेतू  ढ़हने  लगता है और आँखें खुलते- खुलते खुल ही जाती हैं ।

 आधी खुली,आधी बंद आँखों से मैं गिरते-संभलते दिन की शुरुआत  करती हूँ। फिर पूरे  दिन आखिर करना क्या है  यह  सोचते- सोचते दिन निकल जाता है और दयनीय पक्ष तो यह रहता है की तब तक भी निर्णय नहीं हो पाता कि आखिर करना क्या था । उस पर भी कष्ट पहुँचाती  तो  यह बात है की यही हर रोज़  की दिनचर्या है जिसमे न कोई कर्म, न क्रिया है ।

पर आज कुछ अलग सा हुआ, न जाने मन कुछ करने का हुआ ।आज घड़ी को आराम दिया ,उसके उठने से पहले ही सूर्य को प्रणाम किया | सूरज तो इतना हैरान था कि सकपका  गया और बादलों के पीछे जा छिपा । अब जब वो छुप कर बैठा है तो हवा को भी मस्ती चढ़ गई है, जोरों से बहने लगी है और मेरा पागल  मन मटरगश्ती पर है और मेरी कलम भी उसके पक्ष में उतरी है।

बरसों की ख़्वाहिश थी मेरी कि मैं  कुछ ऐसा लिखूँ जो दिल से, संवेदनाओं के रास्ते गहरी मित्रता गाँठले । आज उसी चाहत का पीछा करती मैं सफ़ेद कागज़ पर रुक-रुक कर कुछ सीधी, कुछ घूमती हुई सी आकृतियाँ  काफी देर से गढ़ रही हूँ |

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