ये हुस्न है जो तेरा
इसे चाँद कहूँ या तारा
फिर भी हमें तो इसी ने है मारा
इसकी चाहत में डूबकर मेरा जहां खत्म हो गया
पता भी न चला और क्या सितम हो गया
इसके लिए दौड़ा -भागा,
छोड़ा सब कुछ
पर कहाँ समझा मैं अभागा
कि ये माया है माया
जिसकी गिरफ्त में मैं आया
इसके लिए सात जन्म की साँसें भी कम है
फिर यह तो सिर्फ एक ही जन्म है
इसको पाने की लालसा कम न होगी कभी
चाहे करदो अपनों को अजनबी
No comments:
Post a Comment