कितना औपचारिक होता जा रहा हूँ मैं ,
अब जहाँ हंसने कि वजह मिलती है ,वहाँ सिर्फ मुस्करा रहा हूँ मैं,
मुस्कराने का हर मौका तो गवा रहा हूँ मैं ,
बेवजह जटिल होता जा रहा हूँ मैं ।
कितना औपचारिक होता जा रहा हूँ मैं,
अब अपनों से गले नहीं मिलता ,सिर्फ शिष्टाचार में हाथ मिला रहा हूँ मैं,
उनके करीब आने का हर मौका तो गवा रहा हूँ मैं ,
बेवजह जटिल होता जा रहा हूँ मैं ।
कितना औपचारिक होता जा रहा हूँ मैं,
अब खाने को रूचि से नहीं खाता , सिर्फ छूरी -काँटे को आज़मा रहा हूँ मैं ,
अंगुलि चाटने का हर मौका तो गवा रहा हूँ मैं ,
बेवजह जटिल होता जा रहा हूँ मैं ।
कितना औपचारिक होता जा रहा हूँ मैं,
अब मन को छूने वाले गाने नहीं गाता ,चलन की धुन ही गुनगुना रहा हूँ मैं,
मस्ती से चेह्चाहने का हर मौका तो गवा रहा हूँ मैं ,
बेवजह जटिल होता जा रहा हूँ मैं ।
कितना औपचारिक होता जा रहा हूँ मैं,
अब मैं अपने दिल की नहीं करता , भीड़ के पीछे चला जा रहा हूँ मैं ,
मनमानी करने का हर मौका तो गवा रहा हूँ मैं ,
बेवजह जटिल होता जा रहा हूँ मैं,
सीधी-साधी जिंदगानी को मुश्किल बना रहा हूँ मैं ....
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