ये हवा, जो निस्वार्थ ही बहती है ,
जिसको भी छूती है, मुस्कराहट के कुछ पल देती है ।
इसकी बेफिक्री की हद तो देखो ,
अपना सौंदर्य छुपाये रहती है ,
पर अपने करीब हर ज़र्रे को रूप की सौगात देती है ।
ये हवा, जो पानी से टकराए तो उसे करवटें देती है ,
उसके समतल से आँचल को सलवटें देती है ।
तब जल के दर्पण में हवा की खूबसूरती नज़र आती है ।
ये हवा, जो बादल से टकराए तो उसे रफ़्तार देती है ,
उसकी बिखरी सी सूरत को एक आकार देती है ,
तब घटा के गठन में हवा की खूबसूरती नज़र आती है ।
ये हवा, जो शाक से टकराए तो उसे तरंग देती है ,
उसकी शाखाओं के गुल्म को उमंग देती है ,
तब फुलवारी की महक में हवा की खूबसूरती नज़र आती है ।
ये हवा, जो परिंदे से टकराए तो उसे उड़ान देती है ,
उसके बेकाम से परों को जान देती है,
तब पंखों के मिज़ाज में हवा की खूबसूरती नज़र आती है ।
ये हवा जो हुस्न से टकराए तो उसे प्रेरणा देती है,
उसकी शिथिल सी बनावट को उत्तेजना देती है,
तब सौंदर्य की सरलता में हवा की खूबसूरती नज़र आती है ।
हवा जो दिखती नहीं, फिर भी खूबसूरत नज़र आती है ,
अपनी सहजता से सौंदर्य की व्याख्या को ही विस्तृत कर जाती है ।
VERY GOOD,KEEP ON WRITING, ALL THE BEST
ReplyDeleteV K JUNEJA, KOLKATA