कभी हवा भी चंचल बहती थी ,
ज़मीं भी उज्ज्वल रहती थी,
नदी भी निर्मल होती थी ,
पर मुझे तस्वीर बदलनी थी.…
अब इससे मुझे शिकायत है।
कभी साधू भी शिक्षित होता था,
निर्धन भी निश्चित सोता था ,
ज़मीर भी प्रचलित होता था,
पर मुझे बाज़ार लगाना था.…
अब इससे मुझे शिकायत है। ।
कभी बचपन भोला-भाला था,
यौवन शहद का प्याला था,
सीधा ढंग निराला था,
पर मुझे रफ़्तार में चलना था.…
अब इससे मुझे शिकायत है।
कभी बहू राज दुलारी थी,
ननद बहन सी प्यारी थी ,
नारी प्रेम की क्यारी थी ,
पर मुझे नरमी न गवारी थी.…
अब इससे मुझे शिकायत है। ।
कभी जीवन सरल कहानी थी ,
वक़्त की ना परेशानी थी,
प्रीत ना यूँ बेईमानी थी,
पर मुझे सुलझन उल्झानी थी.
अब इससे मुझे शिकायत है.…
अब इससे मुझे शिकायत है.…
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